सत्यं बद् !                                                तत्सत्                                              धर्मं चर !! 
'भगवत् कृपा हि केवलम्'(Only the Mercy of GOD)
ऋते ज्ञानान्न मुक्ति: -- ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं !(No Salvation without KNOWLEDGE)

सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस

द्वारा 
श्रीराम जन्मभूमि समस्या का सार्वभौमिक समाधान  


 श्री सदगुरुचरणकम्लेभ्यो नमः
“भगवत् कृपा हि केवलम्”
       यस्य भाषा विभातिदं सर्व सद्सदात्मकम्।
सर्वाधारं ‘सदानन्दं’ परमात्मानं तं हरिं भजे ॥
यस्यावतारकर्माणि गायन्ति हास्यमदादयः।
न यं विदन्ति तत्त्वेन तस्मै श्रीभगवते नमः॥
मंगलमय कामना करूँ ‘आत्मतत्त्वम्’ प्रभु आप से।।
मुक्ति अमरता और सिद्धि दो, सदा बचाओ पाप से॥

जिहाद क्यों और किसलिए?
प्रेम से बोलिए-परमप्रभु परमेश्वर की ss जय!
सद् भावी भगवद् प्रेमी प्यारे भाइयों! ‘ला इलाह इल्लाहुव रब्बुल अर्शिल अजीमि’ (अल्लाहतअsला के सिवाय और कोई पूज्य नहीं; वही इज्जत वाले सबसे ऊँचे तख्त (अर्श) का मालिक है।) व एक परमेश्वरवाद (तौहीद) की आवाज बुलन्द करने वाले, परमात्मा-परमेश्वर-अल्लाहतअsला-भगवान-सुप्रीम-लॉर्ड के ही राह में मुसल्ल्म ईमान से जान-व-माल से लगने-लगाने वाला सही मायने में मुसलमान है (आज धरती पर बनतू मुसलमानों या भगवद् भक्तों की भरमार है किन्तु असली मुसलमानों या अनन्य भगवद् भक्तों की संख्या शून्य को प्राप्त हो चुकी है।) वर्तमान में सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस द्वारा विरचित व अखिल ब्रह्माण्ड-खिलकत-यूनीवर्स के सर्वे-सर्वा सर्वोतम-सर्वश्रेष्ठ, कादिरे मुतलक़, रहिम-करीम परमप्रभु भगवान-खुदा-गॉड द्वारा प्रेषित (एवं संरक्षित) प्रस्तुत समाधान उन्हीं को समर्पित हो उन्हीं की कृपा से आपके समक्ष है।

मूर्ति या सद्ग्रन्थ चाहे वे श्रीराम या श्रीकृष्ण की मूर्ति हो अथवा किसी नबी-रसूल-पैगम्बर या एन्जेल-प्राफेट का कोई निशानी या फोटो आदि हो, चाहे वे पवित्र रामायण-गीता या कुरान पाक या होली बाईबिल ही हो-ये सभी के सभी ही और इनके श्लोक-मन्त्र-आयत-रिवेलेशन्स भी भगवान-खुदा-गॉड तो है ही नहीं, ये भगवान-खुदा-गॉड जैसा भी नहीं है। हाँ, ये सभी ही उस सर्वोच्च-सर्वोत्त्कृष्ठ परमसत्ता-शक्ति जो ‘एकमात्र एक’ ही है, के प्रति उत्प्रेरण का श्रोत और उसका बनने-रहने का आधार अथवा माध्यम अवश्य हैं। अतः किसी भी मूर्ति पूजक या मुशरिक को यह स्पष्टतः समझ लेना चाहिए कि उसे कभी भी किसी भी मूर्ति-सद्ग्रन्थ में ऐसा नहीं चिपक जाना चाहिए कि वह ‘वर्तमान’ से ही भूल-भटक जाए, क्योंकि लाभ-परमलाभ उसे हमेशा ‘वर्तमान’ से ही मिलेगा। ‘भूत’ को भी लाभ देने के लिए ‘वर्तमान’ बनना ही पङता है। ‘भूत’ का ही बने रहकर ‘वर्तमान’ को इन्कार कर देना ‘भूत’ को भी गवॉँ देना है।

मूर्ति पूजकों व मूर्ति-पूजा विरोधियों से
मूर्ति-पूजा विरोधियों को याद होना चाहिए कि मूर्ति-पूजा कभी भी व्यर्थ या मिथ्या नहीं है बशर्ते कि वह मूर्ति किसी ऐसे शरीर का हो जिसको जरिये परमसत्ता शक्ति रूप परमतत्त्व रूप भगवततत्त्व या अल्लाहतअsला भगवान या सुप्रीम लॉर्ड खुद ही क्रियाशील रहे हों। इब्राहिम, इशहाक, याकूब, मोहम्मद आदि नबी-रसूल-पैगम्बरों ने मूर्ति-पूजा (बुत परस्ती) का खण्डन इसलिए किया था अथवा उन्हें ऐसा खण्डन करने के लिए भगवान-खुदा-गॉड की तरफ से संकेत इसलिए नाजिल हुआ था क्योंकि उस समय की प्रचलित मूर्तियाँ सर्वोच्च सत्ता-शक्ति रूप कादिर मुतलक़ भगवान-खुदा-गॉड (पूर्णावतारी या भगवदावतारी) से संबन्धित तो थी ही नहीं, वे किसी सत्ताशक्ति रूप अंशावतारी या रसूल-पैगम्बर या एन्जेल-प्राफेट की भी नहीं थी। वे मूर्तियाँ पूर्वजों के शरीरों या काल्पनिक मनमाने देवी देवताओं की होती थी। जबकि पूज्यनीय तो एकमात्र परमात्मा-परमेश्वर-अल्लाहतअsला-भगवान-सुप्रीम-लॉर्ड ही है फिर अन्यों की पूजा क्यों? हालाँकि उन नबियों-रसूलों-पैगम्बरों को भी यह पता नहीं था की उनका परवरदिगार अल्लाहतअsला यहोवा-गॉड इस धरती पर भी कभी-कभी हाजिर-नाजिर होकर किसी मानवीय शरीर से क्रियाशील भी होता है। अतएव मूर्तिपूजकों और मूर्ति-पूजा विरोधियों दोनों को यह स्पष्टतः जान लेना अति आवश्यक है की वे किस मूर्ति की पूजा या किस मूर्ति की पूजा का विरोध करने चले हैं? उस मूर्ति रूप (पूर्व या वर्तमान) शरीर से कौन किर्याशील रहा है अथवा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये मूर्तिपूजक ब्रह्माण्डाधिपति रूप सर्वोच्च सत्ता-शक्ति (भगवदावतारी) के नाम पर भ्रम और भूलवश किसी अन्य के मूर्ति-पूजा में तो नहीं लग गये। और कहीं ऐसा तो नहीं कि ये मूर्ति-पूजा विरोधी लोग उस कादिर मुतलक़ परवरदिगार के नाम पर उसी के पूर्व शरीर वाले मूर्ति के पूजा का विरोध कर उसी का विरोध करने तो नहीं लग गये। ऐसे दोनों प्रकार के लोगों की नाजनकारी अवश्य ही उन्हें एक भयंकर परिणाम के तरफ ले जायेगी। बेशक हमारा परवरदिगार बख्शने वाला बेहद मेहरबान व अकेला ही मददगार है।

जिहाद किसलिए?
कोई भी वर्ग-सम्प्रदाय यह नहीं कहता कि सबसे ऊँचा और सबका ही मालिक जो है वह संख्या में दो-चार या दस है। जो सर्वोच्च होगा-सर्वश्रेष्ठ होगा- सर्वोत्त्कृष्ठ होगा, वह होगा ही ‘एकमात्र एक’। और वही है- परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म-यहोवा-अरिहँत-बोधिसत्व-अकालपुरुष-भगवान-खुदा-गॉड। प्रत्येक धार्मिक सम्प्रदायों या वर्गों का वही ‘एकमात्र एक’ ध्येय और लक्ष्य रहा है। उसी का नाम ले-लेकर और उसी कि दुहाई ले-देकर तथा उसी को खुश करने हेतु क्या दो धार्मिक वर्गों का आपसी टकराव जायज है? जिहाद या धर्म-युद्ध किसलिए? परमात्मा-परमेश्वर-भगवान-खुदा-गॉड की राजी खुशी के लिए या स्वाभिमान (Prestige issue) के तुष्टि के लिए? कोई भी विचारवान अंतर्वर्गीय धार्मिक दंगा-फसाद कायम करना धर्म-युद्ध (जिहाद) छेड़ना मंजूर नहीं कर सकता। ऐसा कोई घोर अज्ञानी और कुफ्र से भरे रोगी दिल-दिमाग वाला कट्टर स्वाभिमानी ही कर सकता है। धार्मिकों-धार्मिकों में धर्म-युद्ध (जिहाद) कैसा? क्या दोनों द्वारा ‘धर्म-धर्म-धर्म’ ही चिल्लाते हुए ‘धर्म’ हेतु ही आपसी टकराव-संहर्ष-तनाव पैदा करना अज्ञानता और स्वाभिमान का सूचक नहीं है?

नाजानकारी ही तनाव का कारण है!
कहने को तो ये यह भी कहते हैं कि बात ‘सही’ और ‘गलत’ की है। लेकिन इन्हें यह मालूम हो कि सही कौन और गलत कौन इसका निर्णय उच्चतम् प्रायौगिक उपलब्धि (जिसमें ‘सम्पूर्ण’ का रहस्य सम्पूर्णतयः समाहित हो) के आधार पर होना चाहिए। बिना सम्पूर्णता को जाने-देखे पाये ही मनमाना अर्थ लगाकर मनमाने तरीके से ‘गलत-सही’ का निर्णय नहीं लेना चाहिए। नाजानकारी में जानकार बनना यानी ‘हम बड़ा-हम श्रेष्ठ-हम जानकार-हम सही’ का मिथ्याहंकार आपसी टकराव को जन्म देगा ही। उस पर राजसत्ता का मनमानागीरी की पीठ पर हाथ रखना उतना ही भयानक है जितना आग में घी डालना। सच्चे दिल-दिमाग से धर्म को समर्पित लोग धर्म के किसी भी विषय पर मतभेद होने पर टकराते नहीं, क्योंकि वे यह जानते हैं के भगवान-खुदा-गॉड और उसका विधान रूप धर्म दोनों ही अत्यन्त रहस्यमय हैं अतः वे भगवान-खुदा-गॉड एवं धर्म-विषयक तथ्यों को लेकर जिहाद या धर्म-युद्ध नहीं छेड़ते—स्वाभिमान का विषय नहीं बनाते बल्कि किसी ऊंचे स्तर के ‘धर्मज्ञ, तत्ववेत्ता या धर्मवेत्ता’ के शरण में जाकर समाधान प्राप्त करते हैं।

 श्रीराम जन्म-भूमि समस्या वर्तमान में राष्ट्र (भारत) की सबसे विकट-गहन और महत्त्वपूर्ण समस्या है जो केन्द्र में श्री राजीव गाँधी की सरकार को व श्री वी० पी० सिंह की सरकार को तो धराशायी बना ही चुकी है, श्री चन्द्रशेखर सरकार (प्रस्तुत आलेख चन्द्रशेखर के प्रधानमन्त्री पद पर रहने के समय का है।) को भी धरासशायी बनाने ही वाली है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री मुलायम सिंह यादव भी इससे नहीं बच सकते पायेंगे। तत्काल बचते जाना उनके सजा का और गंभीर होते जाना है। तत्काल सजा का न मिलना दोष रहित रहना अथवा दोष मुक्त होना नहीं होता बल्कि बड़े स्तर के पापी के पाप घड़ा भरने की प्रतीक्षा भी समझना चाहिए जिसकी परिणिति उसका विनाश होता है।

भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के चलते ऐसा हुआ!
       राजीव, वी० पी०, शेखर, मुलायम आदि-आदि सभी ही महन्त अवैद्दनाथ, अशोक सिंघल, लालकृष्ण आडवाणी आदि-आदि मात्र को साम्प्रदायिक कहने में लगे हैं। इन सभी की मति भ्रष्ट हो चुकी है क्योंकि किसी भी उच्चतम् राजनेता को किसी एक पक्ष को लेकर नहीं चलना चाहिए, सभी के साथ समभाव रखना चाहिए। राजीव, बी० पी०, शेखर, मुलायम आदि को मति भ्रष्ट कहने के मेरे पास बहुत आधार और प्रमाण हैं जिसमें से एक यह भी है कि वोट की चाटुकारिता वाली क्षुद्र राजनीतिक मति-गति का होना। मैं यह कदापि नहीं कह रहा हूँ कि अवैद्दनाथ, अशोक सिंघल, आडवाणी आदि-आदि साम्प्रदायिक नहीं हैं, मगर एक बात ‘और भी’ तो गौर किया जाय कि यदि ये लोग साम्प्रदायिक हैं तो क्या इमामबुखारी, शहाबुद्दीन, मुस्लिम लीग, आजम खाँ आदि-आदि साम्प्रदायिक नहीं हैं? हिन्दू और मंदिर कहना साम्प्रदायिकता नहीं है। सच्चाई तो यह है कि साम्प्रदायिकता है तो दोनों के लिए है और नहीं है तो दोनों के लिए ही नहीं है।
       वास्तविकता तो यह है कि हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख-ईसाई आदि-आदि सम्प्रदाय आपस में हिल-मिलकर मेल-जोल से आपस में प्रेम-व्यवहार सद्-भाव के साथ रहता था, न तो कोई आपस में दुराव-टकराव था और न ही दंगा-फसाद। क्षुद्र राजनेताओं के क्षुद्र राजनीतिक मति-गति के कारण ही आज हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख-ईसाई आपस में एक दूसरे को दुश्मन या शत्रु समझना शुरू कर दिये हैं, यह देन राजनीतिक दुर्मति कि है, न कि धर्म की। वोट और कुर्सी की क्षुद्र मति-गति ने समाज की विघटित और विद्वेषित बनाते हुए विनाश के कगार तक पहुंचा दिया है जिसका सुधरना-संभलना असाध्य तो नहीं मगर दुःसाध्य अवश्य हो गया है अर्थात् असम्भव तो नहीं मगर कठिन अवश्य हो गया है।

दूरगामी स्थिर शान्ति-व्यवस्था—कैसे?
      किसी भी विचारशील प्राणी से एक बात पूछा जाय कि दूरगामी और स्थिर शान्ति-व्यवस्था हेतु राम जन्म-भूमि पर मस्जिद का हटना और मन्दिर का बनना क्या एक अनिवार्य आवश्यकता नहीं है? मुस्लिम बन्धुओं को भी समझना चाहिए कि इब्राहिम-इस्माइल-मोहम्मद साहब मर्यादित और महत्वपूर्ण रहे हैं तो क्या श्री विष्णु जी, श्री राम जी और श्री कृष्ण जी आदि नहीं? सभी सद्-भाव के पात्र हैं, सभी मर्यादित हैं, सबके प्रति हम-आप सभी का सद्-भाव मूलक दृष्टिकोण होना-रहना चाहिए। धर्म न तो मात्र हिन्दू है और न ही यहूदी-कृश्चियन-इस्लाम-सिक्खिजम मात्र। धर्म एकमात्र एक ही ‘धर्म’ है जो हिन्दू-जैन-बौद्ध-यहूदी-ईसाई--इस्लाम-सिक्ख आदि-आदि का मूल और शाखाओं से युक्त है। ये सभी हिन्दू-जैन-बौद्ध-यहूदी-ईसाई-इस्लाम-सिक्ख आदि जो अपने-अपने सम्प्रदाय मात्र को ही धर्म और श्रेष्ठ घोषित कर धर्म के नाम पर आपस में साम्प्रदायिक टकराव करने वाले अपने वास्तविक धर्म से अज्ञानी (अन्जान) तो हैं ही सबके सब ही अधार्मिक भी हैं क्योंकि ‘धर्म’ कभी आपस में लड़ना-झगड़ना नहीं सिखाता बल्कि आपस में मिल-बैठकर सद्-भाव – सद्व्यवहार – सत्प्रेम के साथ एक-दूसरे को जानते-जनाते हुए जो सत्य और श्रेष्ठत्त्व से उक्त हो, उसी को सहजता पूर्वक स्वीकार करते-कराते हुए सभी को ही सत्य प्रधान होना सिखाता है, न कि बैर-भाव रखना।

पूजास्थल कहीं भी कायम किया जा सकता है मगर अवतार भूमि (जन्म-भूमि) हर जगह अथवा कहीं भी स्थापित (कायम) नहीं किया जा सकता। वह तो जहां होता है वहीं रहता है। मुस्लिम बन्धु को भी सोचना चाहिए कि क्या मोहम्मद साहब के जन्म स्थान पर मन्दिर-मस्जिद का झगड़ा हो—ईसा मसीह के जन्म स्थान पर मन्दिर-मस्जिद-गिरिजाघर का झगड़ा हो—श्री राम-श्री कृष्ण जन्म स्थान पर मन्दिर-मस्जिद-गिरिजाघर का झगड़ा हो तो मेरे समझ से तो इसका सहज ही और एक ही समाधान है कि मोहम्मद साहब-ईसा मसीह—श्री राम और श्री कृष्ण के जन्म स्थानों उनके भक्त-अनुयायियों को सद्-भाव एवं सत्प्रेम के साथ दे-देना चाहिए अर्थात मोहम्मद साहब के जन्म स्थली पर मस्जिद ही होना-रहना चाहिए न कि मन्दिर-गिरिजाघर। ईसा मसीह के जन्म स्थान पर गिरिजाघर ही होना-रहना चाहिए न कि मन्दिर-मस्जिद। वैसे ही श्री राम और श्री कृष्ण के जन्म स्थल पर भी मन्दिर ही होना-रहना चाहिए। मोहम्मद साहब के जन्म स्थान पर किसी भी स्थिति-परिस्थिति वश मस्जिद के बगैर मन्दिर-गिरिजाघर बन गया हो, ऐसे ही ईसा मसीह के जन्म स्थान पर गिरिजाघर के बजाय स्थिति-परिस्थिति वश मन्दिर-मस्जिद बन गया हो व श्रीराम व श्रीक़ृष्ण के जन्म-भूमि पर मन्दिर के स्थान पर किसी स्थिति-परिस्थिति वश मस्जिद-गिरिजाघर बन गया हो तो जब तक मोहम्मद साहब वाले स्थान पर मस्जिद, ईसा मसीह वाले स्थान पर गिरिजाघर और श्रीराम और श्रीक़ृष्ण जी वाले स्थान पर मन्दिर नहीं बन जाता, यह हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई समाज कदापि अमन-चैन अथवा शान्ति से नहीं रह सकता। जो कोई भी हो उसे थोड़ा सा सोचना-विचारना चाहिए कि मन्दिर-मस्जिद और गिरिजाघर तो बहुत हो सकते हैं और कहीं भी हो सकते हैं, मगर क्या इन महापुरुषों और सत्पुरुषों के जोकि भगवान-खुदा-गॉड से ही सम्बन्धित रहे हों और उनके साक्षात् अवतार भी रहे हों, क्या उनके जन्म-स्थलों को कहीं भी बदला जा सकता है? नहीं! कदापि नहीं!! बदलना समाज के लिए घातक होगा। बदलाव तत्काल भले ही घातक न हो किन्तु भविष्य उसका घातक होगा ही।
रसूल-पैगम्बर और अवतार हमेशा आदर-सम्मान के पात्र रहे हैं और आगे भी रहेंगे ही। इनकी मर्यादा पर ठोकर मारकर समाज कभी भी अमन-चैन से नहीं रह सकता। इसलिए मुस्लिम-ईसाई बन्धुओं को चाहिए कि हिन्दू समाज श्रीराम और श्रीक़ृष्ण जी के जन्म-स्थान को चाहे जहाँ भी घोषित करें——वह वहाँ रहा हो या न रहा हो यह बात ही नहीं, क्योंकि कोई भी किसी भी स्थान पर जन्म-स्थान की घोषणा एक ही बार तो करेगा, इसलिए मुस्लिम और ईसाई बन्धुओं को भी, भले ही वह मस्जिद और गिरिजाघर ही क्यों न हो, हिन्दुओं को सद्-भाव और सत्प्रेम के साथ सुपुर्द मात्र ही नहीं करना चाहिए बल्कि सद्व्यवहार वश सेवा और सहयोग भी करना चाहिए। ठीक ऐसे ही यदि मुस्लिम बन्धु किसी स्थान को मोहम्मद साहब का जन्म-स्थान घोषित करते हैं तो चाहे जहाँ कहीं भी हो—भले ही वह किसी मन्दिर और गिरिजाघर के स्थान पर ही क्यों न हो, हिन्दू और ईसाई बन्धुओं को चाहिए कि सद्-भाव और सत्प्रेम के साथ मात्र ही नहीं बल्कि सेवा और सहयोग के साथ सुपुर्द करते हुए मस्जिद निर्माण करावें। ठीक वैसे ही यदि कोई ईसाई बन्धु किसी स्थान को ईसा मसीह का जन्म-स्थान घोषित करते हैं तो चाहे वह जहाँ कहीं भी हो— मन्दिर और मस्जिद के स्थान पर ही क्यों न हो, क्योंकि जन्म-स्थान की घोषणा तो किसी एक स्थान पर तो होगा, इसलिए हिन्दू और मुस्लिम बन्धुओं को चाहिए कि उस स्थान को भले ही मन्दिर-मस्जिद क्यों न हो, गिरिजाघर हेतु ईसाइयों को सद्-भाव और सत्प्रेम के साथ सुपुर्द तो कर ही देना चाहिए साथ ही साथ सद्व्यवहार पूर्वक गिरिजाघर निर्माण में सेवा और सहयोग भी करना चाहिए। यदि ऐसा कर दिया जाय तो हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई का सदा-सदा के लिए दुर्व्यवहार ही खत्म को जाय।

किसी भी भगवदावतार—सद्-गुरू या प्राफेट-रसूल-पैगम्बर की मर्यादा किसी मन्दिर-गुरुद्वारा-गिरिजाघर-मस्जिद से कहीं श्रेष्ठ है। भगवान-खुदा-अकालपुरुष-गॉड किसी भी एक-दो-चार मन्दिर-मस्जिद-गुरुद्वारा-गिरिजाघर की अपेक्षा अपने सत्पुरुष-महापुरुष-रसूल-प्राफेट-पैगम्बर से अधिक नजदीकी और अपनत्व में होता है। कोई भी उनके अपने-अपनों के नाम पर संघर्ष-टकराव करके उन्हें खुश कैसे कर सकता है? और उनकी नाराजगी तो इन सम्प्रदायवादियों के विनाश-पतन का कारण बनेगा ही!

क्या धरती का कोई हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई मेरे इस प्रश्न का जवाब देगा कि क्या किसी भी सम्प्रदाय के द्वारा किसी भी समाज-सम्प्रदाय का रसूल-पैगम्बर और अवतार अमर्यादित होने का पात्र है? निश्चित ही यह जवाब न बनेगा कि ‘नहीं’। फिर उनके नाम पर आपस में टकराव क्यों? मोहम्मद साहब-ईसा मसीह –नानक देव-श्रीराम और श्रीक़ृष्ण जी कभी रसूल-पैगम्बर-भगवद् दूत और भगवान के अवतार रहे हैं और उस मर्यादा में रहेंगे भी। इन महापुरुषों-सत्पुरुषों के नाम पर मन्दिर-मस्जिद-गिरिजाघर-गुरुद्वारा को लेकर टकराव क्यों? ये लोग जहाँ-जहाँ गए और ठहरे वहीं-वहीं ही मन्दिर-मस्जिद-गिरिजाघर-गुरुद्वारा बनते गए। इतना ही नहीं इन्हीं महापुरुषों-सत्पुरुषों के माध्यम से, भगवान-खुदा-गॉड के नाम पर ही सही, सैकङों-हजारों मन्दिर-मस्जिद और गुरद्वारा बने हैं और बनते भी जा रहें हैं और सभी ही पवित्र और पूजा-स्थल हैं। यदि मन्दिर पूजा-स्थल हैं तो मस्जिद इबादतगाह, यदि गिरिजाघर प्रेयर-होली प्लेस है तो गुरुद्वारा प्रार्थना-पवित्र गुरुस्थान। कौन है जो मन्दिर-मस्जिद-गिरिजाघर-गुरुद्वारा को पवित्र-पाक स्थल नहीं मानेगा—पूजा-आराधना-इबादत हेतु पवित्र स्थान नहीं मानेगा?
यह बात सही है कि मन्दिर-मस्जिद-गिरिजाघर-गुरुद्वारा आदि भगवान—खुदा—गॉड—सद्-गुरू का पवित्र-पाक पूजा-आराधना-प्रार्थना-इबादत स्थान है। उसे तोड़ना अथवा नष्ट नहीं करना चाहिए। सदा ही उसे संरक्षण प्रदान करना चाहिए। मगर एक बात सदा ही याद रखिये कि कोई मन्दिर-मस्जिद-गिरिजाघर-गुरुद्वारा श्रीराम जी-श्रीक़ृष्ण जी-मोहम्मद साहब-ईसा मसीह और नानक देव से बड़ा नहीं हो सकता—कदापि नहीं हो सकता। संसार में मन्दिर-मस्जिद-गिरिजाघर और गुरुद्वारा कि स्थापना और प्रचार-प्रसार-विकास इन्हीं महापुरुषों-सत्पुरुषों के माध्यम से हुये हैं, तो क्या इन सत्पुरुषों-महापुरुषों के जन्म स्थान के नाम एक स्थान को भी सबको मिल-जुलकर के स्थापित नहीं करने-होने देना चाहिए? बिल्कुल होने देना चाहिए और होने देना मात्र ही नहीं बल्कि सेवा-सहयोग भी करना चाहिए। यदि श्रीराम जी और श्रीक़ृष्ण जी के जन्म-स्थान के नाम पर एक मस्जिद-गिरिजाघर-गुरुद्वारा हटाने ही पड़े—यदि मोहम्मद साहब के जन्म-स्थान के नाम पर एक मन्दिर-गिरिजाघर-गुरुद्वारा ही हटाने पड़े—यदि ईसा मसीह के जन्म-स्थान के नाम पर एक मन्दिर-मस्जिद-गुरुद्वारा ही हटाने पड़े —यदि नानक देव के जन्म-स्थान के नाम पर एक मन्दिर-मस्जिद और गिरिजाघर ही हटाने पड़े तो इसमें कौन सी बड़ी बात हो गयी? क्या इससे भगवान—खुदा—गॉड—सद्-गुरू नाराज हो जायेगा? कदापि नहीं! कदापि नहीं!! कदापि नहीं!!! क्योंकि ये सत्पुरुष—महापुरुष—भगवान—खुदा—गॉड—सद्-गुरू के साक्षात् रूप और उनके ही बन्दे हैं इसलिए उनके जन्म-भूमि के नाम पर किसी भी स्थान को हटाकर ही क्या, यदि तोड़-फोड़कर भी कायम किया जाय तो इसमें किसी भी प्रकार का कोई दोष-अपराध-पाप नहीं हैं। हाँ! मन्दिर-मस्जिद-गिरिजाघर-गुरुद्वारा तोड़ करके कोई कोठा-महल-इमारत नहीं बनाई जा सकती, क्योंकि मन्दिर-मस्जिद-गिरिजाघर-गुरुद्वारा भगवान—खुदा—गॉड—सद्-गुरू से सम्बन्धित है और कोठा-महल-इमारत मनुष्य से सम्बन्धित है।
हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई सभी को यह अच्छी प्रकार से जान-समझ लेना चाहिए कि भगवान—खुदा—गॉड—सद्गुरू दो नहीं सदा एक ही होता है। किसी मन्दिर में भगवान ही मात्र रहते होंगे खुदा—गॉड—सद्-गुरू नहीं, किसी मस्जिद में खुदा ही रहते होंगे भगवान—गॉड—सद्-गुरू नहीं, किसी गिरिजाघर में गॉड ही रहते होंगे भगवान—खुदा—सद्गुरू नहीं——यह एक मात्र भ्रम और भूल ही है। भूल और भ्रांति के सिवाय कुछ नहीं।

सवाल “जन्म-भूमि वाले मन्दिर-मस्जिद” का है
यहाँ पर श्रीराम जन्म-भूमि समस्या मात्र मन्दिर-मस्जिद का नहीं बल्कि जन्म-भूमि वाले मन्दिर और मस्जिद का है। जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि मन्दिर-मस्जिद कहीं भी और कितना भी हो सकता है मगर जन्म-भूमि कहीं भी और कितना भी नहीं हो सकता, इसलिए मुस्लिम बन्धुओं को चाहिए कि श्रीराम और श्रीक़ृष्ण की जन्म-भूमि के नाम पर कोई विरोध और टकराव है तो अपने विरोध और टकराव को वापस लेकर सद्-भाव एवं सहयोग प्रदान करें ताकि हिन्दू भी मोहम्मद साहब और मस्जिद के नाम पर ऐसे ही सद्भाव एवं सहयोग पूर्ण रवैया अपना सकें। मन्दिर-मस्जिद मानव निर्मित हैं जबकि राम-कृष्ण और मोहम्मद साहब साक्षात् अवतार और रसूल हैं—सत्पुरुष और महापुरुष हैं। इसलिए इन सत्पुरुषों और महापुरुषों की मर्यादा किसी भी मन्दिर-मस्जिद से श्रेष्ठ है। भगवान—खुदा—गॉड किसी भी एक-दो-चार मन्दिर-मस्जिद-गिरिजाघर के अपेक्षा अपने सत्पुरुष और महापुरुष से अधिक नजदीकी-समीपी और अपनत्व में होता है। यहाँ पर समस्या मात्र मन्दिर और मस्जिद का होता तो मेरे द्वारा यही कहा जाता कि मस्जिद है तो उसे छोड़ दिया जाय—उसे तोड़ा-हटाया न जाय—मन्दिर ही कहीं अन्यत्र बना लिया जाय। मगर यहाँ बात मात्र मन्दिर-मस्जिद का नहीं बल्कि जन्म-स्थान का है।
समस्या मन्दिर-मस्जिद की नहीं बल्कि जन्म-भूमि वाले मन्दिर या मस्जिद की है। परमात्मा—परमेश्वर—भगवान—खुदा—गॉड—सद्-गुरू दो-चार नहीं बल्कि ‘एकमात्र एक’ ही है और सत्पुरुष—महापुरुष —रसूल —प्राफेट—पैगम्बर उसी ‘एकमात्र एक’ के ही तथा ‘एकमात्र एक’ ही के सबसे अधिक समीपी होते हैं; फिर उस ‘एकमात्र एक’ की ही दुहाई ले-लेकर उसके अपने-अपनों के नाम पर टकराव अथवा संघर्ष क्यों?
बन्धुओं को भी सहजता पूर्वक सद्-भाव एवं सत्प्रेम के साथ, यदि वह मस्जिद ही हो तब भी, मस्जिद रही भी हो तब भी, उसे जन्म-स्थान के नाम पर हिन्दुओं को मन्दिर हेतु सुपुर्द करते हुए सद्व्यवहार पूर्वक यथा सम्भव सेवा-सहयोग भी करना चाहिए। इसमें सन्देह नहीं है कि यदि मुस्लिम बन्धु ऐसा करें तो हिन्दुओं के दिल दिमाग पर एहसान दर्ज कर देंगे। हिन्दू निश्चित ही उनके प्रति एहसान मंद हो जायेंगे और मुस्लिम इस्लाम के प्रति भी सद्भाव और सौहार्द देने हेतु मजबूर हो जायेंगे।
एक तो जन्म-स्थान वह भी अयोध्या में— यदि मस्जिद रहने भी दिया जाय तो आने वाले श्रीराम भक्तों में जब भी उत्प्रेरण और जागरण होगा, शांति-भंग, दंगा-फसाद, खून-खराबा आदि-आदि होता ही रहेगा।इसका जीता-जागता और सबसे ज्वलन्त प्रमाण उस जन्म-स्थान के प्रति लगभग ७८ बार का एक-दूसरे के प्रति आक्रमण और लाखों-लाख खून-खराबा करके किसी मस्जिद को कायम किया जाना है और साथ ही साथ क्या भगवान-खुदा-गॉड यह स्वीकार करेगा कि उसके सत्पुरुष—महापुरुष के स्थान को मन्दिर-मस्जिद का झगड़ा बनाकर खून-खराबा किया कराया जाय और स्थान के महत्व को कम कर दिया जाय । वर्तमान में यदि हिन्दू उस स्थान को छोड़ भी दे तो आगे आने वाली हिन्दू पीढ़ी उसे छोड़ पायेगी? नहीं! कदापि नहीं!! और यह दुर्भाव-टकराव, दंगा-फसाद, खून-खराबा टल भले ही जाय लेकिन समाप्त नहीं हो सकता। यही हाल मक्का में मस्जिद के स्थान पर मन्दिर होता तो वहाँ के लिए मैं मस्जिद का समर्थक हो जाता। यहाँ पर मैं मस्जिद की अपेक्षा मन्दिर का समर्थक नहीं बल्कि मन्दिर-मस्जिद के अपेक्षा सत्पुरुष-महापुरुष के जन्म-स्थान और वह भी उनके गृह नगरी में हो तो मैं उसका समर्थक हूँ। मक्का में मोहम्मद साहब और मस्जिद का समर्थक हूँ तो यरूसलेम में ईसा मसीह और गिरिजाघर का । ठीक ऐसे ही अयोध्या और मथुरा में श्रीराम और श्रीक़ृष्ण जन्म-भूमि और काशी में शिव के स्थान और मन्दिर का समर्थक हूँ। मेरे लिए महन्त अवैद्दनाथ और इमामबुखारी दोनों समान हैं, विश्व हिन्दू परिषद्, मुस्लिम लीग, भारतीय जनता पार्टी सब समान हैं, अशोक सिंघल, शहाबुद्दीन, लालकृष्ण अडवानी, आजम खाँ और बाला साहब देवरस सब समान हैं। साम्प्रदायिक हैं तो ये सभी और नहीं हैं तो इनमें से कोई नहीं।

राजनेताओं की दुर्गति जारी
मन्दिर बनेगा और बनेगा ही। दुनिया की कोई ताकत इसे रोक नहीं सकती। जो भी रोकने आयेगा, गिरेगा, धराशायी होगा—निश्चित ही होगा। देखें राजीव, वी० पी० आदि को जिनकी सरकार धराशायी हो गयी और दूसरे तरफ समर्थन दे करके प्रभाव और सरकार कायम करने में अस्तित्व हीन भाजपा राजस्थान में सरकार बनाई ही, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में दो तिहाई से ज्यादा बहुमत से सरकार स्थित हो गयी। इतना ही नहीं परमप्रभु की कृपा प्रसाद से जिसके जन्म-भूमि पर मन्दिर बनाने का समर्थन किया, भारत के सारे जनमानस पर उसका (भाजपा का) इतना प्रभाव छा गया कि छोटी-मोटी पार्टियाँ और सत्तारूढ़ जनता दल (स) क्या सबसे बड़ी और पूरे भारत पर अधिकाधिक वर्षों तक छाई रही कांग्रेस पार्टी भी जनता के सम्मुख जाने से भयभीत है—अर्थात चुनाव से भाग रही है। राजीव, चन्द्रशेखर को मात्र इसीलिए समर्थन दे रहें हैं की उनकी चुनाव के रुप में जनमानस के सामने जाने की हिम्मत नहीं है। वर्तमान प्रधान मन्त्री (चन्द्रशेखर) भी यही कह रहे हैं कि चुनाव का उपयुक्त माहौल नहीं है अर्थात् सभी की सभी पार्टियाँ ही मुस्लिम के वोट की चाटुकारिता में श्रीराम जन्म-भूमि मन्दिर का विरोध करके अपने मुख पर कलंक का कालिख पुतवा चुकी हैं जिससे चुनाव के रूप में जनमानस के सामने जाने में शर्म आ रही है, हारने का भय सता रहा है। वहीं जन्म-भूमि का समर्थन करने वाली भाजपा को देखिए कि हनुमान-अंगद कि तरह से ताल ठोक करके चुनाव के रूप में जनमानस के समक्ष होने-जाने के लिए सभी के ललकार रहा है। हर-जीत तो बाद की बात है—दिल और उत्साह तत्काल देखिए।
भारत वर्ष में कोई भी दल श्रीराम और श्रीकृष्ण का विरोध करके सरकार के रूप में स्थापित नहीं रह सकता है। कुर्सी किसी परिस्थिति बस मिल भी जाय तो तब तक छिनती जाएगी जब तक कि उसका समर्थन न हो जाय।

एक और चेतावनी
कुल मिलाकर उपसंहार के रूप में मुझ को यही कहना होगा कि श्रीराम जन्म स्थान को राजनीतिक मुद्दा न बनाकर इसको सद्-भाव और सोहार्द के मुद्दा बनाया जाय तथा मन्दिर और मस्जिद से सत्पुरुष और महापुरुष (रसूल) का दर्जा ऊँचा—श्रेष्ठ स्वीकार करते हुए सत्पुरुष-महापुरुष भगवान-खुदा-गॉड के अधिक समीप है। यह मुद्दा मात्र मन्दिर-मस्जिद का नहीं बल्कि सत्पुरुष-महापुरुष के जन्मस्थली का है इसलिए मुस्लिम बन्धुओं को चाहिए कि श्रीराम जन्मभूमि स्थल को सद्-भाव और सत्प्रेम पूर्वक मात्र समर्पित ही न करें बल्कि समर्पित करते हुए मन्दिर निर्माण कर-करा करके भगवान-खुदा-गॉड के द्रष्टि में सद्-भावी और समभावी बनें। राजनेताओं को भी चाहिए कि भेदभाव मूलक (फूट डालो-शासन करो) आदि क्षुद्र मति-गति धर्म और धार्मिक स्थलों पर न ले जाय, शांति-व्यवस्था हेतु इससे दूर रहने का प्रयास करें।

‘धर्म और धार्मिकों’ से छेड़खानी कभी भी महंगी रही है—
देवासुर संग्राम, राम-रावण युद्ध, कृष्ण-कंश युद्ध, महाभारत, मूसाअलीस्लाम और फिरऔन बादशाह, ईसामसीह और फरीसियों का टकराव, मोहम्मद साहब और कुरैश का टकराव आदि-आदि तो है ही वर्तमान में सिक्ख-यहूदी-ईसाई-मुस्लिम आदि-आदि सभी आपसी टकराव-संघर्ष क्षुद्र राजनीति के चलते ही हैं।
अरे मतिभ्रष्ट राजनेता अब भी चेत जा। अब भी संभल जा । अपने को ही नहीं भोली-भाली जनता को भी देख। भेद-भाव फैलाकर—जातिवाद फैलाकर—वर्गवाद फैलाकर—सम्प्रदायवाद फैलाकर अमन-चैन और शांति-व्यवस्था चाहता है? धर्म और धार्मिकों को सम्मान और मर्यादा देकर देख! धर्म और धार्मिक तेरे लक्ष्य-भूत अमन-चैन अर्थात् शांति-व्यवस्था को पूरे भू-मण्डल पर ही कुछ ही वर्षों में स्थापित करके दिखला देंगे। तू राजनेता, मिथ्यावादी, मिथ्याचारी, स्वार्थी और महत्वाकाँक्षी, वोट के चाटुकार और कुर्सी के लोभी! समाज में—जनमानस में कभी भी अमन-चैन अथवा शांति-व्यवस्था कायम नहीं कर-करा सकता। इसके लिए धर्म और धार्मिक महापुरुष-सत्पुरुष ही कर-करा सकते हैं। पूरे धरती वासी प्राणी मात्र को विनाश के मुँह में ले जाने में क्यों तुले हो? अरे अहँता और मदान्धता के शिकार सारे विश्व के राजनेतागण! अब से भी चेत! अब से भी सम्हल! रावण-कंश-दुर्योधन-फिरऑन बादशाहों की तरह अपने जनमानस को विनाश के मुँह में ले जाने पर क्यों तुले हो? विश्व को विनाश से बचाने हेतु ‘मेरे विश्व बचाव और संरक्षण’ कार्यों में हो सके तो सहयोग दे। नहीं तो चुपचाप बैठकर देख। मैं यह कदापि नहीं कहता कि गलत-सही जो कुछ भी मैं कहूँ मान ले। मगर यह अवश्य कहता हूँ और कहूँगा भी कि पहले मुझे और मेरे भगवद्-ज्ञान रूप तत्त्वज्ञान को अच्छी प्रकार से जाँच करते-कराते हुए जान-देख-परख-पहचान ले और हर प्रकार से सत्य ही होने पर सही, मेरे सत्यता को स्वीकार कर लो। इसमें आप सभी क्या, सारे विश्व कि भलाई है। मूढ़, गुमानी और अहंकारी मत बन। कम से कम विश्व स्तरीय भविष्य वाणियों पर भी गौर कर। पुराण-बाईबिल-कुर्रान कि भविष्य वाणियाँ भी यही कह रही हैं। स्वीकार कर लो अन्यथा पछतायेगा। सब भगवत् कृपा हि केवलम्। 
                                                                                   सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस 










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